बुजुर्ग माता-पिता बेटे से वापस ले सकते हैं प्रॉपर्टी -हाईकोर्ट |Parents can take back their property

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अगर कोई बेटा अपने बुजुर्ग माता-पिता की ठीक से देखभाल नहीं करता है या उन्हें सताता है तो वे उसे गिफ्ट में दी गई प्रॉपर्टी वापस ले सकते हैं। कई बच्चे रोजगार को लेकर देश से बाहर चले जाते हैं या कुछ मामलों में ऐसा भी होता है कि बच्चे यहीं रहते हैं लेकिन वे अपने मां-बाप की देखभाल नहीं करते हैं।  इन परिस्थितियों में अगर मां-बाप ने प्रॉपर्टी बच्चों के नाम पर ट्रांसफर कर दिया है तो दिक्कत यह आती है कि अब अगर उनके बच्चे देखभाल नहीं करेंगे तो वे किसके सहारे रहेंगे।  प्रॉपर्टी का ट्रांसफर इंडियन कांट्रैक्ट एक्ट 1972 के तहत गिफ्ट माना जाता है और इसे वैलिड तरीके से अगर ट्रांसफर कर दिया गया है तो यह फाइनल होता है यानी कि इसे देने वाला वापस लेना चाहे तो भी नहीं ले सकता है। ऐसे में उन मां-बाप के सामने समस्याएं आती हैं तो ऐसे में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले के आधार पर वे अपने बच्चों से प्रॉपर्टी वापस ले सकते हैं।  आज हम इसी बारे में बात करेंगे।

कानून ने बुजुर्गों को यह अधिकार दिया है कि यदि बच्चे उनसे दुर्व्यवहार करें, समय पर ठीक भोजन न दें, उनसे नौकर जैसा बर्ताव करें तो माता-पिता बेटा-बेटी-दामाद या कोई और, सभी को अपने घर сайт омг से निकाल सकते हैं। वसीयत से बेदखल कर सकते हैं। यदि वसीयत बच्चों के नाम कर दी है तो उसे बदलवाकर अपनी संपत्ति बच्चों से छीन सकते हैं।

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यदि कोई बेटा अपने बुजुर्ग माता-पिता की ठीक तरह से देखभाल नहीं करता है या फिर उन्हें सताता है तो माता-पिता दी हुई प्रोपर्टी को उससे वापस ले सकते हैं। यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिया है। जस्टिस रंजीत मोरे और अनुजा प्रभुदेसाई की बेंच ने ट्रिब्यूनल के आदेश को सही ठहराते हुए वरिष्ठ नागरिकों के लिए बनाए गए विशेष कानून का हवाला दिया है। ट्रिब्यूनल ने बुजुर्ग माता-पिता के अनुरोध पर बेटे-बहू को तोहफे में दी गई प्रोपर्टी के दस्तावेज रद्द कर दिए हैं। बेटे-बहू ने फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी।

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मुंबई के एक विधुर पिता ने दोबारा शादी का फैसला किया तो उसके बेटे ने जोर देकर आधी संपत्ति अपने नाम करा लिया ताकि उसके हित सुरक्षित रह सके।  इसके बाद उस व्यक्ति के बेटे और बहू ने पिता की देखभाल करना स्वीकार किया लेकिन सौतेली माता की नहीं।  ऐसे में पिता ने आधी संपत्ति को वापस पाने के लिए ट्रिब्यूनल में मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस एक्ट 2007 के प्रावधानों के तहत गठित ट्रिब्यूनल में याचिका दायर किया।  आधी संपत्ति के हस्तांतरण को रद्द करने के लिए दायर याचिका के हक में सुनाए गए ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ बेटे ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर किया लेकिन जस्टिस रंजीत मोरे और जस्टिस अनुजा प्रभु देसाई ने इस फैसले को बनाए रखा।

आइये अब जानते है की किस आधार पर संपत्ति मिलेगी वापस

इंडियन कांट्रैक्ट एक्ट, 1872 के तहत दिए गए गिफ्ट्स को किसी भी परिस्थिति में वापस नहीं लिया जा सकता है।  हालांकि अगर प्रॉपर्टी देने वाले को धोखे में रखकर या किसी अनुचित तरीके से अगर इसे ट्रांसफर किया गया है तो इसे वापस लिया जा सकता है।  केंद्र सरकार ने द मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस एक्ट, 2007 के तहत माता-पिता और सीनियर सिटीजंस की देखभाल सुनिश्चित करने के लिए प्रॉपर्टी ट्रांसफर को रद्द करने का प्रावधान जोड़ा गया।  इस एक्ट के सेक्शन 23 के तहत यह निर्धारित किया गया कि प्रॉपर्टी पाने वाले को इसे देने वाले की मूल जरूरतों व सुविधाओं का ख्याल रखना होगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो प्रॉपर्टी के ट्रांसफर को ट्रिब्यूनल रद्द कर सकता है। अगर मां-बाप यह साबित करते हैं कि उनकी देखभाल सही नहीं हो रही है तो मेंटेनेंस एक्ट के सेक्शन 23 के तहत प्रॉपर्टी के ट्रांसफर को रद्द कराया जा सकता है। यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि इस एक्ट के प्रभावी होने के पहले जो प्रॉपर्टी ट्रांसफर हुई है, उसमें माता-पिता को बच्चों से प्रॉपर्टी वापस मिलने में बहुत दिक्कत आ सकती है।

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क्या कहता है स्पेशल ऐक्ट:
पैरंट्स और सीनियर सिटिजन कल्याण और देखभाल ऐक्ट 2007 में कहा गया है कि बच्चों की यह कानूनी जिम्मेदारी है कि वह अपने बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल करें। उनको अकेला छोड़ना या देखभाल न करना अपराध है।


ऐसे बुजुर्ग पैरंट्स जिनकी उम्र 60 साल से ऊपर है और वो अपनी देखभाल नहीं कर सकते, वह अपने बच्चों से मेंटेनैंस मांग सकते हैं। इनमें जैविक दादा-दादी भी शामिल हैं।
स्पेशल ट्राइब्यूनल ऐसे बुजुर्गों को 10 हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दे सकता है।
जिन बुजुर्ग पैरंट्स से कोई औलाद नहीं है, ऐसे में उनकी प्रॉपर्टी लेने वाले या संभालने वाले या उनकी मौत के बाद जिन्हें प्रॉपर्टी मिलेगी, उनसे गुजारा भत्ता मांग सकते हैं।
बुजुर्ग पैरंट्स को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी बालिग बच्चों, नाती-पोतों की है। चाहे वो पुरुष हों या महिला।
अगर किसी ने कानून का पालन नहीं किया तो उसे तीन महीने की सजा हो सकती है।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने 2016 में इसी तरह के एक मामले में आदेश सुनाया था कि बेटा केवल माता-पिता की मर्जी से ही उनके घर में रह सकता है। माता-पिता न चाहें तो उसे उनके घर में रहने का कानूनी हक नहीं है, भले ही उसकी शादी हुई हो या न हुई हो। इसी तरह दिल्ली का ही 2017 का एक केस है, जिसमें हाईकोर्ट ने एक अन्य फैसले में कहा गया था कि जिन बुजुर्गों के बच्चे उनसे खराब व्यवहार करते हैं, वे किसी भी तरह की प्रॉपर्टी से, वसीयत से बच्चों को बेदखल कर सकते हैं। सिर्फ माता-पिता की कमाई से बनी संपत्ति पर ही यह बात लागू नहीं होती, बल्कि यह प्रॉपर्टी उनकी पैतृक और किराए की भी हो सकती है जो बुजुर्गों के कानूनी कब्जे में हो।

तो दोस्तों इस तरह से अगर बच्चे अपने पेरेंट्स का ध्यान नहीं रखते तो पेरेंट्स अपनी गिफ्ट की हुई प्रॉपर्टी वापिस ले सकते है। दोस्तों उम्मीद करते है की आपको हमारा आज का आर्टिकल अच्छा लगा होगा।

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